मै तो एक परदेसी हूँ,
सुत धरा का मै बहुभेशी हूँ,
मै तो बस चलता जा रा हूँ
बस अचल सा बढ़ता जा रा हूँ|
मस्तक में एक जिज्ञासा है
आँखों में खेल तमाशा है
कानो में एक हलचल सी है
हलचल में एक नशा सा है|
मिटटी की खुशबु लिए हुए
सब बोली मिश्रित किये हुए
बिखरी मुस्काने सिये हुए
उगते सूरज का नमन किये
अपनी धुन में मै जा रा हूँ
बस अचल सा बढ़ता जा रा हूँ|
सूरज की लाली मुझमे है
तारों की चमचम मुझमे है
हाँ चाँद सी शीतलता मुझमे
जग की खुशहाली मुझमे है,
कभी ग्रीष्म काल सा जलता हूँ
फिर कभी शीत के जैसा ठंडा हूँ
सांवन की ऋतू में झूम झूम
मै उड़ता हुआ पतंगा हूँ|
प्यासा सा मै चहुँ घूम घूम
इस लौ में मिलता जा रा हूँ
मै तो एक परदेसी हूँ,
सुत धरा का मै बहुभेशी हूँ,
मै तो बस चलता जा रा हूँ
बस अचल सा बढ़ता जा रा हूँ|
कभी जीवन ले में उलझ गया
कभी पावनता से बिछड़ गया
सही-गलत की उलझन में
कभी मानवता से पिछड़ ही गया,
अपना और पराया क्या
ना मेरा कोई गंतव्य ठिकाना है
मैंने तो बस है ये सीखा
यही जीना और मरजाना है|
बस 'उस पिता' का मै संदेशी हूँ,
मानवता का सकल हितैषी हूँ,
मै तो बस चलता जा रा हूँ,
बस अचल सा बढ़ता जा रा हूँ|
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
मै तो एक परदेसी हूँ,
ReplyDeleteसुत धरा का मै बहुभेशी हूँ,
मै तो बस चलता जा रा हूँ
बस अचल सा बढ़ता जा रा हूँ|
Bahut Sundar...
Bahut sundar aur arthpoorn rachana----.
ReplyDeleteBAHUT ACHHE SHABDON KO PIROYA HAI....
ReplyDeleteअपना पूरा परिचय ही दे दिया आपने कविता में
ReplyDeleteलेकिन समीर ,ये रहा को रा करके शब्दों के अस्तित्व को खतरे में न डालो ,
ये मत कहना कि ये कविता की मांग थी
@फ़िरदौस जी, हेमंत जी, रजनीश जी..... आप सब ही तो मेरी प्रेरणा के श्रोत हैं :)...धन्यवाद
ReplyDelete@अलका जी...नहीं नहीं मै अपनी गलती के लिए क्षमा चाहूँगा....कोशिश करूँगा की ऐसा फिर ना हो :)
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
इस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
ReplyDelete