Kuchh Kshanikaen

Wednesday, March 24, 2010

सपनो की दुनिया और सच्चाई का धरातल

एक आदमी सो रहा है. वो अपने सपने में संसार को देखता है . वो देखता उसका मन उसको कितनी सुन्दर जगह ले आया है.चारों तरफ खुशहाली है . संसार में सब कुछ अच्छा है. पर जब सुबह होती है तो वो सोंचता है की सच्चाई ये नहीं है तो  वो उठाना नहीं चाहता है वो जनता है की दुनिया में कितनी बुराई व्यपित है....और अंत में वो सब समाप्त कर देना चाहता है ....बस इस पर ही ये टूटी फूटी कविता आपके समक्ष रख रहा हूँ.....कुछ कमी हो तो जरूर बताये
***Description of His dream******
हसीं था वो जहाँ
        थीं सारी खुशियाँ वहाँ .
सूरज तनहा ना रहता था
        चाँद तारों से कहता था.
वो भव्य नजारा सुन्दर सा
       वो प्यार धरा का , गंगा माँ .

चारों ऑर उजाला है,  सूरज  राह दिखा रा है
बह रही ज्ञान की गंगा है, हर कोई पाप मिटा रा है.

कहीं कलकल-कलकल की तरंग,
               यहाँ पंक्षी भरते हैं उमंग,
वो हवा में उरती एक पतंग,
              नहीं डोर काटने का घमंड,
सब सात सुरों को गाते हैं
               है फैली हुई घटा सतरंग.

वर्ण-व्यथा नहीं है जग में
         बस प्यार घुला है हर रग में
सब रंग फिजा में बिखरे हैं
         नहीं भेद भाव है अब डग में

*****Now he is realizing that its d morning time n he has to wake up******

मन ही मन मै हठ खेल रहा
         था स्वप्न मैं सुन्दर देख रहा
पर ये सब यादों की माया है
         था मैं सच्चाई से खेल रहा.

*****Now he is thinking abt d real world*******

है पता धरा की बाँहों में
        व्यपित हुई बुराई है .
धर्म हो चुके झूठे हैं
        अब उपहासित सच्चाई है
सब रंगमहल में खोये हैं
        है इज्जत सभी गवाई है
अब आग हमें भड़कानी है
       न  ये शब्द मात्र की लड़ाई है .


*****After thinking this all he is urging to Nature ki "Ab wo sab kuchh khatam kar dene ka AAvhan kar raha hai"******

आव्हान

जागो हे माँ प्रकृति तुम जागो
       हे नभ बस अब तुम छ जाओ
आव्हान सुनो सब शिव जी का
       अब तांडव मुख दिखला जाओ

हर कंठ लगा चिल्लाने है , क्या बहरा हुआ खुदाई है,
उपहास हुआ जग जननी का, कष्टित धरा कराही है,
हे नभ,जल हे समीर सुन लो,अब शिव-तांडव की बारी आई है
..............................


अब शिव-तांडव की बारी आई है

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