Kuchh Kshanikaen

Sunday, April 25, 2010

कवि सम्मेलन : द्वितीय संकलन

कवि खसरा : हमारे ये कवि जरा विशेष हैं| ये बीमारियों से इतना ज्यादा ग्रसित रहते हैं कि अपनी कविताओं में भी उनके कारणों  और उनको फ़ैलाने वालो का ही उल्लेख करते हैं| तो इनकी इस रचना का मजा उठाते हैं :)

 भावनाओं को समझो


जानम मेरी, सुन लो सदा ये मेरी
बस मै प्यार तुम्ही से करता हूँ,
तुम जब, कीचड़ में रोज नहाती तो
मै छिप-छिप के आंहे भरता हूँ|

मोरनी जैसे पंख तुम्हारे,
आँखे क्या कजरारी हैं|
बिदक रहे हैं सारे मच्छर
सबको चाह तुम्हारी है|

पर मै सबसे तगड़ा इनमे,
आतंक है मैंने फैलाया|
मलेरिया, डेंगू के चलते
कितनो को मैंने टपकाया|

ऐश्वर्या हो या कैटरीना
सब के सब मुझसे डरते हैं|
भिन-भिन करते जब मै आता हूँ,
सल्लू भईया भी फिर भगते हैं|

खून चखा मैंने इन सब का
पर ये दिल तुम पर अटका है|
बद्दुवाएँ देता हूँ इनको, क्यों के
एक डंक अब भी मेक-अप में लटका है|

तुम मेरी बन जाओ तो फिर,
साथ उड़ेंगे साथ चलेंगे|
दिन भर दोनों प्यार करेंगे,
रात में चैन से खून पियेंगे|

मशहूर हुआ हूँ मै इतना
की नाना पाटेकर कहते हैं|
(सब जानते हैं "एक मच्छर आदमी को हिंजड़ा बना देता है ")
T.V.  वाले भी त्रस्त सभी,
और राजू भईया तो मच्छर चालीसा जपते हैं|

कहते हैं सब बड़े,सयाने,
के मै अब सुर में गाता हूँ|
थोडा सा खोया रहता हूँ,
थोडा सा गुम हो गया हूँ|

भरकस तुमसे बोल रहा हूँ,
अब कुछ मै कर जाऊंगा|
बना के तुमको अब मै अपना
प्रेम ग्रन्थ लिख जाऊंगा|

कसम खाएँगे सारे मच्छर,
प्यार हमारा ऐसा होगा|
तुम बन जाओगी रानी मेरी,
और जीवन में प्यार-प्यार बस प्यार ही होगा| 
तुम बन जाओगी रानी मेरी,
और प्यार-प्यार बस प्यार ही होगा|

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