मिला किसी को प्रेम का घड़ा,
सुखा मिला, किसी को शांति |
कोई सस्ते दाम चढ़ गया
तो हो गयी किसी की शादी|
कहीं बम फटा,
कहीं प्यार बटा,
कहीं बट गयीं यादें |
फिर किसी राह में,
बस इसी आँह से,
बंद हो गयीं सासें|
दीवाली सा ताज-काण्ड,
हाँ, दीवाली सा ताज-काण्ड,
और राजनीति की कीचड़ होली|
और राजनीति की कीचड़ होली|
ख़ूनी खेल बना सत्यागृह,
बोल रहे सब कड़वी बोली|
कहते हैं, भारत महान, पर भूखे नंगे रहते हैं,
हाँ कहते हैं, भारत महान, पर भूखे नंगे रहते हैं|
निकल पड़ो जिस तरफ, उधर ही ढेरों पग-पग चलते हैं |
निकल पड़ो जिस तरफ, उधर ही ढेरों पग-पग चलते हैं |
पापनाशिनी की विडम्बना, खुद पर ही शायद रोती है|
कितनो को अब साफ़ करे, हर चीज की एक हद होती है|
मतदान भी करना तो अब जैसा "मुक्तिदान" सा लगता है|
रोज-रोज की बात है ये, अब कुछ न नया सा लगता है|
भूला-भक्त भूमि-भूतल-भगवान कि निंदा करता है|
ये कवि भी तो, नीर के प्यासे मरू के जैसा, जीवन यापन करता है|
रिक्त पड़े हैं जीवन-अक्षर, कह रहा है ये मन 'व्यभिचारी' |
क्रन्तिकारी बन जाओ फिर से, कुछ करने की आई है बारी|
नव निर्माण राष्ट्र का कर दें, फिर बने 'भगत', जाएँ बलिहारी|
आओ मिल कर लें शपथ, सभी, नव वर्ष न जाने देंगे खाली|
आओ मिल कर लें शपथ, सभी, नव वर्ष न जाने देंगे खाली|
आओ मिल कर लें शपथ, सभी, नव वर्ष न जाने देंगे खाली|